Jul 19, 2011

जीत का जश्न

अमित कुमार
दुनिया की एक चैथाई आबादी रात के गहराते सन्नाटे के बीच जश्न मनाने सड़क पर उतर पड़े तो उसका मायने कुछ खास तो जरूर होगा। 2अप्रैल की रात को जो जश्न शुरू हुआ वह अगले सुवह होने तक जारी रहा।विश्व इतिहास में यह पहला वाक्या था, जब इनती बड़ी आबादी जीत का जश्न मनाने के लिए सड़क पर उतर गयी। जी हां, हम बात कर रहे है भारत के विश्व चैपिंयन बनने और इसके बाद के जश्न की। देश का कोई ऐसा शहर नही था, कोई ऐसा मोहल्ला नहीं था। गांव का कोई ऐसा नुक्कड़ नही था, जहंा जश्न मनाते लोग नही दिखे। उसमें भी करोड़ों लोग तों ऐसे थे, जिन्हें इस बात का इल्म तक नहीं था कि वो इस जश्न के भागीदार किस वजह से है। बस उन्हें इतना ही मालूम था, कि आज मुल्क ने दुनिया फतह कर ली है।

भारत के 64 साल के इतिहास में यह पहला वाक्या था ,जब दुनिया ने इस मुल्क के लोगों को इस तरह जश्न मनाते देखा ।यह जश्न बस्तर के जंगल में भी उसी जुनून के साथ मना, जिस जुनून के साथ महानगर मुम्बई में। नार्थ इस्ट के अलगाववादियों ने भी इस जश्न को उसी तरह मनाया, जिस तरह दिल्ली के दिवानों ने। जश्न मनाने का अंदाज एक था,मकसद एक था।हां, शहर और गांव जरूर अलग थे। कहा जाता है कि 14 अगस्त की रात और 15 अगस्त 1947 के दिन कुछ इसी अंदाज में देश की आजादी का जश्न मना था। लेकिन तब दुनिया नग्न आंखो से इसे देखने से बंचित रह गयी थी।लेकिन 2 अप्रैल की रात को 125 करोड़ लोगों के जश्न का गवाह दुनिया बनी।

दुनिया के लिए अनोखा मौका इस लिहाज से भी था, कि इनती बड़ी आबादी का मजहब और देवता एक है, यह भारत जैसे मुल्क में ही मुमकिन है।इस मुल्क में भले ही हिन्दू से लेकर मुसलमान ,सिख से लेकर ईसाई और बौध से लेकर जैन धर्म के लोग रहते है, जिनका देवता भले ही अलग अलग है ।लेकिन जब बात एक दूसरे को जोड़ने की होती है, गंाव और शहर की दूरी को खत्म करने की होती है, तो फिर इस मुल्क का मजहब क्रिकेट है और उसका अधोषित देवता सचिन रमेश तंेदूलकर है।आप कह सकते है कि 125 करोड़ की आबादी को आपस में जोड़ने का काम क्रिकेट कर रहा है।यह वह क्रिकेट है जिसे दुनिया एलओसी के नाम से जानती है। यह वह एलओसी नही है जो भारत और पाकिस्तान को विभाजित करतीं है बल्कि यह वह एलओसी है जो भारत और पाकिस्तान को आपस में जोड़ती है। जिसे ‘‘लव आॅफ क्रिकेट’’ कहते है।

जब खेल दिवानगी से आगे बढ़ती है, तो उसे जुनून कहते है, और जब जुनून के हद को पार करती है तो वह मजहब बन जाता है।साल 1983 और 2011 के बीच का फर्क यही है कि उस समय क्रिकेट एक खेल था जिसे कपिल देव की कप्तानी में 1983 की जीत के जरिये यह परवान चढ़ना शुरू हुआ। लेकिन साल 2011 आते आते यह मजहब में बदल गया।क्योंकि इन बरसों में क्रिकेट की दुनिया में एक ऐसा अद्भूत शख्स भारत के लिए खेलना शुरू किया, जिसने खेल के मायने को ही पुरी तरह बदल कर रख दिया।इस खेल में कोई ऐसी किंदबंती नही बची, जिसे सचिन तंेदूलकर ने हकीकत में बदल कर भारतवासियों की झोली में ना डाला। हर नामुमकिन कारनामें को इस शख्स ने साकार कर दिया।जो शख्स नामुमकिन को मुमकिन में तब्दील करता रहा।जिस शख्स ने 125 करोड़ की आबादी के सपने को अपना सपना मानकर हकीकत में तब्दील किया हो, उसे भगवान न कहे तो क्या कहे।यही वजह है कि भारत के लिए ही नही दुनिया के लिए भी आज सचिन रमेंश तेंदूलकर इंसान कम भगवान ज्यादा है।हमारे भगवान को तिरंगे से उसी तरह प्यार है जिस तरह हमेे और आपको है।यही वो कड़ी है जो इस मुल्क को सचिन के जरिये आपस में जोड़ रही है।

इन सालों में जब भी हमारे अवतार को दर्द महसुस हुआ,जब भी आह भरी तो मुल्क ने भी आह भरी।जब सचिन ने बानखे़ड़े में जश्न मनाया, तो दुनिया की एक चैथाई आबादी जश्न में डुब गयी।और जश्न का दौर है कि थमने का नाम नही ले रहा ।वेा भी तब, जब यह दौर खेल का नही, बाजारवाद का है पूजींवाद का है।लेकिन एक शख्स है जो इस दौर में भी हजारो करोड़ के बाजार की अहमियत को खत्म कर रहा है। जो मैदान पर उतरता है तो संसद से सड़क तक सन्नाटा पसर जाता है। क्योंकि वह वक्त सचिन के करिश्मे का जो होता है।








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