Dec 18, 2008

चमत्कार को नमस्कार .......

कहते है चमत्कार बार बार नही होता ये सदियों में एक बार होता है । भारतीय क्रिकेट के ७५ साल के इतिहास में पहली बार चमत्कार हुआ, और इसका गबाह बना चेन्नई का चेपक स्टेडियम ।जाहिर है जब चमत्कार सदियों में एक बार हो तो उसको अंजाम कोई इन्सान नही बल्कि भगवान् ही दे सकता है। चेन्नई में भी चमत्कार को अंजाम क्रिकेट के भगवान् सचिन रमेश तेंदुलकर ने दिया । इंग्लैंड ने चौथी पारी में भारत के सामने जीत के लिए ३८७ रनों का टारगेट दिया था जो अब तक एशिया के क्रिकेट मैदान पर किसी भी क्रिकेट टीम ने इतनी बरी चुनौती की सफलता पुर्बक पार नही किया था । ऐसे में भारत के सामने इस पहाड़ जैसे टारगेट को पाना नामुमकिन ही था । लेकिन अगर भगवान् ख़ुद असंभव को सम्भव करने आ गए तो फिर क्या कहा जा सकता है । चेन्नई में ठीक ऐसा ही हुआ । आधुनिक क्रिकेट के भगवान् सचिन रमेश तेन्दुलकर इंग्लैंड की जीत के बीच में आ गए । फिर १५ दिसम्बर २००८ को चेपक के मैदान पर जो कुछ हुआ उसका गवाह पुरी क्रिकेट बिरादरी बनी ॥ जिसने भी सचिन को बल्लेबाजी करते देखा वो दातो ताले उंगली दबा ली । सचिन ने दम पर पुरी इंग्लैंड टीम को मात दी । हलाकि ये पहला मौका नही था जब क्रिकेट के इस भगवान् ने अपना चमत्कारिक रुख से क्रिकेट बिरादरी को भौचक्का कर दिया हो । ये कम तो वो १९ सालो से करते आ रहे है और इसका गवाह दुनिया का शायद ही कोई क्रिकेट मैदान और देश न हो । वो जहा जाते है आपने बल्ले के जौहर और स्वाभाव से लोगो को अपना मुरीद बना लेते है । उनसे शालीन क्रिकेटर दुनिया ने शायद ही अब तक देखा है । सचिन की महानता का आलम ये है जब भी वो क्रिकेट के मैदान पर उतरने वाले होते है कोई न कोई वर्ल्ड रिकॉर्ड उनका इंतजार कर रहा होता है । आज दुनिया का लगभग हर रिकॉर्ड उन्होंने अपने नाम कर लिया है । सचिन का चेन्नई के इस मैदान से कितना लगाव है की वो इससे पहले १९९९ में पाकिस्तान के खिलाफ भी ठीक ऐसा ही करतब दिखाया था लेकिन उस समय सचिन और देश का दुर्भाग्य था की जीत से महज़ १३ रन रह गया । उनके पर्दर्शन ले लिए उन्हें मन ऑफ़ दी मैच से नवाजा गया लेकिन हार के बाद अवार्ड से नवाजा जाना सचिन को मंज़ूर नही इसलिए उस अवार्ड को वो ख़ुद लेने मैदान पर नही आए । ये सचिन के पेर्सोनालिटी को बताने के लिए काफी है ।

लेकिन चेन्नई जीत को मुंबई में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद को समर्पित करके सचिन ने दिखा दिया की आपसे बड़ा देशभक्त कोई नही । ये देश आपके बल्ले के अदा के साथ आपकी देशभक्ति का कायल है ॥ सचिन तुमको बार बार नमन .......... । ये देश कितना खुशनसीब है जिसे गाँधी के बाद आप जैसा नायक मिला है ॥ हमारे राजनेता अगर आपसे थोड़ा भी देशभक्ति सिख पाते तो देश की तस्बीर ही बदल जाती ।

Nov 13, 2008

"दादागिरी" अलविदा .........



सौरव चंडीदास गांगुली येही वो नाम है जो पिछले १२ सालो से करोडो देशवाशियों के सपनो के साथ सोते और जागते रहे है । लेकिन कहते है की हर युग का अंत होता है और सौरव गांगुली के युग का भी अंत हो गया .... वो भी दम्भी ऑस्ट्रेलिया पर जीत के साथ ... । अब सौरव गांगुली पर करोडो क्रिकेट प्रेमियों के सपनो को साकार करने का बोझ नही है जिसको पिछले १२ सालो से क्रिकेट के महाराज ढ़ोते रहे है ... यह जिम्मेदारी अब किसी और को निभानी है ....
नागपुर टेस्ट मैच जीतकर भारत ने न सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया के बादशाहत की गुरुर को तोडा बल्कि भारतीय क्रिकेट के सबसे बेहतरीन कैप्टेन में से एक सौरव चंडीदास गांगुली को जीत के साथ बिदाई दी । सौरव गांगुली जीत के साथ बिदाई के कितने हक़दार थे ....इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की गांगुली ने ही भारतीय क्रिकेट को गर्त से निकल कर क्रिकेट के दुनिया में बेताज बादशाह के दरवाजे तक पहुचाया । सौरव गांगुली जिन्हें दुनिया दादा के नाम से भी जानती है ने टीम की बागडोर साल २००० में तब संभाली जब भारतीय क्रिकेट टीम बुरे दौर से गुजर रही थी और क्रिकेट में हार टीम का किस्मत बन गई थी । लेकिन तभी भारतीय क्रिकेट के छितिज पर एक ऐसा कैप्टेन आया जिसने पुरी तरह टूट चुकी टीम में न सिर्फ़ जीत का ज़ज्बा भरना था बल्कि टीम को जितना भी सिखाना था...... दादा की दादागिरी येही से शुरू हुयी ... भारतीय क्रिकेट टीम ने दादा के लीडरशिप में जो "दादागिरी" शुरू की वो क्रिकेट खेलने वाले दुनिया के हर देश में उसकी झलक दिखी । क्या साउथ अफ्रीका और क्या वेस्ट इंडीज़...क्या इंग्लैंड और क्या ऑस्ट्रेलिया दादा ने इन देशो खूब भारत की दादागिरी दिखाई .... इतना ही नही क्रिकेट खेलने वाले देशो को सौरव गांगुली ने ही बताया की भारत हारने के लिए नही बल्कि बिपक्झी टीम का धुर्रे उराने के लिए आई है .... दादा ने ही टीम को सिखाया की सामने वाली टीम के आख में आख डालकर बात किया जाती है कन्धा झुका कर नही .... ये मूलमंत्र भारतीय टीम के लिए बरदान साबित हुयी .....अश्वमेध के रथ पर सबार हो कर जब वर्ल्ड चैम्पियन टीम ऑस्ट्रेलिया २००१ में भारत के दौरे पर आई तो उस रथ को दादा ने अपने दादागिरी से कोलकाता के एडेन गार्डन में रोक दिया ....ऑस्ट्रेलिया का विजय रथ क्या रुका भारत ने ऑस्ट्रेलिया को २-१ से धो कर भारत से रबाना किया । इसी सीरीज़ में सौरव गांगुली ने स्टीव वा को टॉस के लिए जहा इंतजार करबाया वोही ऑस्ट्रेलिया को उसी की भाषा में मैदान में जबाब देकर टीम के तेबर को दिखाया की अब इंडियन क्रिकेट टीम वो टीम नही जो गेंद और बल्ले के साथ जबाब देना तो जानती है लेकिन जुबान से नही । फिर क्या था दादा कहा रुकने वाले भारत ने जब नेटवेस्ट ट्राफी जीती तो दादा ने क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले इंग्लैंड के लार्ड्स की बालकनी से टी शर्ट उतार कर दुनिया जीत की खुशी मानाने का नया अंदाज़ सिखाया । दादा सिर्फ़ एक अच्छे कप्तान ही नही बल्कि एक ताबरतोड़ बल्लेबाज भी थे ... उनके बल्ले की गूंज का आलम ये था की दुनिया आपको ऑफ़ साइड का भगवान् कहती थी यानि दादा को ऑफ़ साइड में गेंद मिली नही की गोली की रफ्तार में गेंद बाउंड्री लाइन के बाहर नज़र आती थी... लेकिन इन सब के बीच दादा के १२ साल के क्रिकेट करियर का सफर मुस्किल से भरा भी था। जिस तरह बीसीसीआई को दुनिया में खास पहचान बनबाने में जग्गू दादा यानि जगमोहन डालमिया की भूमिका जगजाहिर है और फिर सियासी खेल में मात खाने के बाद जग्गू दादा को बाहर का रास्ता पकड़ने को मजबूर होना .......उसी तरह सौरव गांगुली को भी अपनी टीम को बुलंदियों पर पहुचाने के बाद उन्हें भी काफी हद तक बियाबान में धकेल दिया गया या यु कहे की क्रिकेट को अलविदा कहने के लिए मजबूर होना पड़ा ..... यानि दादा भी देश की गन्दी राजनीती की भेट चढ़ गए । लेकिन योधा तो योधा होता है और वो अपनी पहचान कभी नही खोता ऐसे में दादा भी अपना पहचान कैसे खोते । उन्होनो फ़ैसला कर लिया इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहने का ......और १२ सालो से चला आ रहा सफर नागपुर में देश जीत के साथ साथ आखरी समय में भारत की कप्तानी करते हुए खत्म हो गया .....
दादा की क्रिकेट के मैदान पर भले ही दादागिरी खत्म हो गई हो, लेकिन देश में क्रिकेट को नई बुलंदियों तक पहुचाने और अपने बल्ले का जौहर से करोडो भारत वाशियों का मनोरंजन करने के लिए इस नायक को देश वाशी शायद ही भुला पाए ....
दादा आप भले ही क्रिकेट के मैदान से दूर हो गए हो लेकिन देशवाशियों के दिल से नही ... जीत का जसेन्न मनाने का आपका अंदाज़ क्रिकेट प्रेमियों के दिलो में हमेश जिबंत बना रहेगा । दादा क्रिकेट वर्ल्ड आपके योगदान को उस समय तक याद रखेगा जब तक दुनिया में क्रिकेट का नाम रहेगा ... । आपके कारनामे आज की तरह ही आने वाले दिनों में वो हर पल रोमांचित करते रहेंगे जिसे आपने देशवाशियों को १२ सालो तक क्रिकेट खेलते हुए दिया है .... यकीनन कहा जा सकता है आप देशवाशियों के दिलो में हमेशा एक याद बन लोगो के दिलो पर राज करते रहेंगे ॥ भारत का युवा कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अपने कप्तानी में आपकी छबि तलाश रहा है लेकिन दुनिया जानती है की छबि हकीकत नही होती ...महज एक पर्तिबिम्ब होती है .....येही आपकी जीत है .....और येही आपका भारतीय क्रिकेट में योगदान भी .......

Oct 30, 2008

"राज"नीति ने किया "राहुलराज" का एनकाउंटर

बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए जाबाज़ पुलिस इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा के शहादत पर सियासी उबाल अभी पुरी तरह थमा भी नही था, की मुंबई पुलिस की करतूत से एक नौजबान की मौत ने देश की सियासत को गरमा दिया है । मुंबई पुलिस ने जिस मर्दानगी से राहुल राज को ढेर किया और उसके बाद राजनितिक बयानबाजी का जो सिलसिला शुरू हुआ उसकी तपिस सुदूर पश्चिम राज्य महाराष्ट्र से बाहर निकल कर पूर्वी राज्य बिहार तक महसूस हो रही है । गौरतलब है की राहुल राज बिहार के पटना का रहने वाला था और मौत से २ दिन पहले ही नौकरी की तलाश में माया नगरी मुंबई पंहुचा था लेकिन राहुल राज औरो की तरह किस्मत का उतना धनि नही था , येही वजह थी की लाखो करोडो लोगो को रोजगार देने वाला मायानगरी में उसे नौकरी तो नही मिली । हा नौकरी की बजाय मुबंई पुलिस की गोली जरूर मिली । मुंबई पुलिस ने बस हिजैक करने की कोशिश के तहत एक नही दो नही बल्कि १३ गोली मारी । जाहिर है इतनी गोली खाने के बाद इन्सान तो इन्सान भगवान भी नही बचते। ऐसे में राहुल राज कैसे बच सकता था । लेकिन अपने पुलिस की इस करतूत पर शर्मसार होने की बजाय महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल ने वो बयान जारी कर दिया जिससे देश की एकता आचानक डगमगाने लगी । आर आर पाटिल ने कहा की कानून को अपने हाथ में लेने वाले को गोली का जबाब गोली से दिया जाएगा और मुंबई पुलिस ने जो कुछ किया बिल्कुल ठीक है । फिर क्या था ऐसे में बिहार के नेता भी कहा पीछे रहेने वाले । बिहार के मुख्मंत्री नीतिश कुमार ने कहा की मुर्गी पर तोप चलाया गया । इन सब के बीच न तो आर आर पाटिल और न ही बिहार के दुसरे नेताओ को इस बात का आभास हुआ की वो संबैधानिक पोस्ट पर बैठे ऐसे लोग है जो किसी राज्य ,धर्म ,जाती के पर्तिनिधि नही है । और उनके इस बयानबाजी से देश की संवैधानिक पोस्ट को नुकसान भी हो रहा है। अब सवाल ये उठता ही की क्या देश नफरत की गाड़ी से चलेगी जिसमे इंधन "राज"नेता जैसे लोग डालेंगे । भला ये कोई पूछे महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल से की आप जिस कानून ब्यबस्था को लेकर गोली का जबाब गोली से देने की बात कर रहे थे वो किसी खास बर्ग के लिए है या फिर सभी के लिए ।अगर सभी के लिए है तो फिर पाटिल साहब आप और आपकी निकम्मी पुलिस पिछले ९ महीने से कौन से धर्म का पालन कर रही है? क्या उन गुंडा तत्बो के खिलाफ भी वोही कारबाई नही होनी चाहिए थी जो आपने कानून की हवाला देकर राहुल राज के साथ किया ? राज ठाकरे के गुंडों के साथ भी ऐसा ही सलूक नही होना चाहिए था ? पाटिल साहब आप ये क्यों भूल जाते है की आप महाराष्ट्र के गृहमंत्री के साथ साथ उस विरासत के बाहक भी है जिसका नेतृत्व कभी गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगा धर तिलक जैसे राष्ट्रवादियों ने किया था । इतना ही नही भारत की आज़ादी के लिए चले आन्दोलन में महाराष्ट्र राष्ट्रबादी आन्दोलन की केन्द्र हुआ करता था । यानि जिस राज्य ने देश में एकता की नींब राखी आज उसी राज्य में कुछ गुंडे किस्म के लोग उसी एकता को खंडित कर रहे है और आप तमाशबीन बने बैठे है । क्या आपको आपने इतिहास से कुछ सिखने की जरुरत नही है ?बालासाहब ठाकरे जो अपने को तथाकथित मराठी मानुस की नायक और शिवा जी महाराज की अवतार समझते है उन्हें शायद नही मालूम की वीर शिवा जी ने मुग़ल साम्राज्य की नींब हिला दी थी लेकिन बालासाहब ठाकरे और उनके ही पदचिन्हों पर चलने की दंभ भरने वाले राज ठाकरे ऐसे सियासी सुरमा है जो आपने राज्य के बाहर की सरहद को अपने आखो से देखा भी नही है । लेकिन is ही राजनीती कहते है जिसमे लोकतंत्र की मखौल उराया जाता है और सियासी सुरमा नफरत की आग को जालाने में लगे रहते है .येही वजह ही की महाराष्ट्र के चंद नेताओ की वजह से देश शर्मसार हो रहा है। जी हा दुर्भाग्य से देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल भी महाराष्ट्र से ही है जो दिल्ली में १३ सितम्बर को हुए सीरियल बम धमाके के बाद इसलिए देर से लोगो की हाल चाल लेने पहुचे क्युकी वहा जाने से पहले पाटिल साहब शूट बदलने की कबायद में जुटे थे । यानि पाटिल २ धंटे में चार बार रंग बिरंगी शूट बदलते रहे । ऐसे में देश की हालात को समझा जा सकता है। इस धटना के बाद जब मिडिया के जरिये काफी हंगामा हुआ और इस्तीफे की मांग बढ़ी तो शिवराज पाटिल ने कहा की उन्हें तो सोनिया मैडम की आशिर्बाद हासिल है। अब सवाल ये उठता है की देश में जारी राजनीती के इस नुरा कुस्ती की खेल कही कांग्रेस के शाह पर तो नही हो रहा । क्यों कांग्रेस पार्टी जिसके लीडरशिप में केन्द्र सरकार है पुरी मसले पर चुप्पी सधे हुए है। क्या ये सब कुछ कांग्रेस पार्टी वोट बैंक के लिए करबा रही है। आख़िर क्यों देश की सबसे पुराणी पार्टी और रस्त्रबदी आन्दोलन की अगुआ होने की दंभ भरने वाली पार्टी इससे निपटने की बजाये अपना हाथ झाड़ रही है।

Oct 23, 2008

नफरत की "राज"नीति

कहते है राजनीती लोकहित के लिए की जाती है खासकर भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में लोगो की सबसे बड़ी ताकत राजनेता ही होते है । क्यूकी वो आम लोगो के प्रतिनिधि होते है । लेकिन जब नायक ही खलनायक बन जाए तो ऐसे में हालात को समझा जा सकता है । पिछले कुछ सालो से हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है यानि राजनीती के जरिये ही लोकतंत्र का गला दबाया जा रहा है । जी हा जिस लोकतन्त्र ने राजनीती का विकसित प्लेटफार्म दिया उसी का गला दबाने की साजिस । इसी का नतीजा है की मुंबई जल रहा था या यु कहे की जलाई जा रही थी और सियासत करने वाले अपना हाथ शेकने में मशगुल थे और ये सब कुछ हो रहा था वोट बैंक की खातिर । ये नफ़रत की सियासत का आगाज ८ महीने पहले वालासाहब ठाकरे के भतीजे ने किया जो आज किसी परिचय के मोहताज नही । आपने बिल्कुल ठीक समझा राज ठाकरे । लेकिन राज ठाकरे की माने तो वो ये सब कुछ मराठी मानुस के लिए कर रहे है यानि ११ करोड़ मराठी के स्वाभिमान की लडाई । ये लडाई उनके चाचा और शिवसेना के सर्बेसरवा बालासाहब ठाकरे भी लड़ चुके है और वो भी आज से ४२ साल पहले १९६६में । तब महाराष्ट के कांग्रेसी मुख्मंत्री बसंत राव नाईक थे और बालासाहब ठाकरे गैर मराठियों के खिलाफ इसी तरह का मोर्चा खोला था जैसा आज कल राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ खोले हुए है । हा ये जरूर है की बालासाहब मराठियों का दिल तो नही जीत सके थे लेकिन वसंत राव नाईक का दिल जरूर जीत लिया था ।क्यूकी नाईक साहब वाममोर्चा का मुंबई के मिलो पर लगे लाल झंडे को हटाना चाहते थे और बालासाहब ठाकरे अपने गुंडा गिरोह के जरिये इसी तरह आगजनी और तोड़ फोर करके नाईक साहब के काम को अंजाम तक पंहुचा दिया था । लाल झंडा इतिहास बन गया और बालासाहब ठाकरे नेता बन गए तथाकथित मराठी मानुस के । आज ४२ साल बाद जब वोही शिवसेना कांग्रेस के लिए खतरा बनने लगी है तो कांग्रेस के ही बर्तमान मुख्मंत्री विलास राव देशमुख को राज ठाकरे के रूप में एक ऐसा हथियार मिल गया जो न सिर्फ़ शिवसेना के मराठी वोट बैंक में सेंध लगा सके बल्कि शिवसेना के वोट बैंक को तोड़ कर कांग्रेस के लिए सत्ता का द्वार खुला रखे ..... आज राज और उनके गुंडे जो कुछ मुंबई में कर रहे है उसे महाराष्ट के कांग्रेसी सरकार का हिमायत हासिल है । और उसी हिमायत की सह पर राज ठाकरे गली मुहल्ले के नेता से हीरो बन्ने की और आगे बढ़ रहे है । लेकिन इन सब के बीच जो पिछले ८ महीने से महाराष्ट में मराठी मानुस के नाम पर हो रहा है उसका आभास शायद राज ठाकरे को भी नही है बरना मराठी मानुस के नाम पर वो लाखो करोरो मराठियों का नुकसान नही करते । राज ठाकरे को शायद यह भी नही पता की मुंबई में हुए पिछले ४ दिनों की आगजनी और तोड़ फोर में सबसे ज्यादा नुकसान उनके मराठी मानुस का ही हुआ है । लेकिन पिछले कुछ दिनों में न सिर्फ़ मुंबई बल्कि देश के दुसरे भागो में जो कुछ हुआ उससे एक बात साफ हो गई की राजनीती हमारे देश के लिए वरदान नही बल्कि अभिशाप होने जा रहा है । जिस तरह जाती और धर्म के नाम पर सियासत का बाज़ार तेज़ हो रहा है उससे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के वाहक राष्ट्र के बुनियाद को खतरे में ला खड़ा किया है । सवाल ये है की क्या इसी तरह की नफ़रत की आग भड़का कर सियासत होगी । सवाल सिर्फ़ मुंबई का ही नही है बल्कि उड़ीसा , कर्नाटक में जिस तरह चर्च को जलाया गया , हिंसा का नग्गा नाच किया किया और सरकार मूक दर्शक बनकर देखती रही उससे ये सवाल उठाना लाजमी होता है की इस देश में सबकुछ या यु कहे की कुछ भी ठीक नही है । कही पर नक्सल हावी है तो कही पर उग्रवादी गुट और जहा ये नही है वह सियासत का ऐसा रोग हावी है जो लोगो को कुछ देने की बदले उनका रोजी रोटी छीन रही है । क्या इसी तरह देश चलेगे .क्या इसी तरह टुकड़े टुकड़े में लोगो को वोट बैंक में बाँट कर सियासत होगी । आज हालात ये है जहा एक तरफ़ हम चंदरमा तक की दूरी को ठेंगा दिखा रहे है वोही दूसरी तरफ़ देश के दुसरे कर्णधार देश की ही मिटटी पलीद करने में लगे है और वो भी बेशर्मी से । जहा हम दुनिया भर में ताल टोक कर वर्ल्ड के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश होने का दंभ भरते है वोही शायद हमें इसी लोकतंत्र का मखौल उडाते हुए शर्म भी नही आता । अब भला ये कोई पूछे क्या येही लोकतंत्र है जिसमे लोक और तंत्र का गला दबाया जा रहा होता है और तंत्र तमाशबीन रहता है। क्या येही गाँधी का भारत है जिसमे दंगा और आगजनी करने की पुरी छुट है । क्या येही गाँधी का सपना था जिसे गाँधी के वारिस नई उचाई तक पंहुचा रहे है । इन राजनेताओ ने देश को कुछ दिया तो नही हा बदले में लोगो का रोजी रोटी छीन कर उनके भावनाओ के साथ जरूर खेल रहे है इसके लिए इतिहाश इन "राज " नेताओ को शायद ही माफ़ करे ....... लेकिन इन सब के बीच अगर देश की जनता इसी तरह चुप चाप बैठ कर तमाशा देखती रही तो देश के हर गली मोहल्ले में एक राज ठाकरे होगा और सियासत करने वाले वो लोग होयिंगे जो राज ठाकरे जैसे गुंडा को प्रोत्साहन देते है ..... और आम आदमी इसी तरह राजनीती की चौकरी में पिसते रहेंगे ....अब आपको तय करना है ........नफ़रत की सियासत का बीज बोने वाले या फिर ऐसा समाज जिसमे गुंडा "राज" नही बल्कि सामाजिक समरसता .....

Oct 17, 2008

डॉन को पकड़ना नामुमकिन है

क्रिकेट भारत में अगर धर्म है तो उसके अधोषित देवता सचिन रमेश तेंदुलकर है । सचिन को इस मुकाम तक पहुचने में भले ही १५ साल से ज्यादा लगे हो । लेकिन उन्होंने क्रिकेट करियर के आगाज १९८९ में ही यानि कराची में पाकिस्तान के खिलाफ अपने पहले टेस्ट मैच में ही दिखा दिया था की दुनिया को जल्दी ही क्रिकेट का शहंशाह मिलने वाला है । फिर कराची से जो सचिन का सफर शुरू हुआ वो आज भी जाड़ी है। इस सफर में भारत के अधोषित भगवान् को कई मुश्किल भरे दौर से भी गुजरना पड़ा । लेकिन शहंशाह तो शहंशाह ठहरा । उसने हर चुनौतियों का सामना किया अपने सफर को सफलता के शिखर पर पंहुचा दिया है । शायद उस मुकाम तक जहा पहुचना किसी क्रिकेटर के लिए सपना होता है । जी हा ड्रीम यानि सुबह हुयी नही की वो सपने हकीकत से कोसो दूर हो जाते है । दुनिया का कोई ऐसा मैदान नही , कोई ऐसा गेंदवाज नही, जिसे सचिन नाम के भुत का सामना ना करना पड़ा हो । येही सचिन की बादशाहत है जिसने क्रिकेट के सारे रिकॉर्ड अपने नाम कर लिए है । अब शायद क्रिकेट का कोई ऐसा रिकॉर्ड नही जो सचिन के नाम दर्ज न हो । टेस्ट हो या ओने डे सबसे ज्यादा रन सचिन के नाम है। ये सचिन की बादशाहत को बताने के लिए काफी है । सचिन ने ये बादशाहत १०० कड़ोर के लोगो की उम्मीद को अपने कंधे पर टिका कर हासिल किया है । १९ सालो से सचिन का कन्धा उम्मीदों की बोझ को लादे चलता जा रहा है। दुनिया में तेंदुलकर के खिलाफ क्रिकेट खेलने वाले हर देश शायद सचिन की इस प्रतिभा पर इर्सा करते है। कभी इयान चैपल तो कभी कभी वासिम अकरम गाहे वगाहे सचिन को क्रिकेट से सन्यास लेने की हिदायत देते रहते है .लेकिन हर आलोचकों को तेंदुलकर जबाब अपने बल्ले से ही देते है.......येही काम वो सालो से करते आ रहे है, उनकी माने तो वो उस दिन क्रिकेट को अलविदा कह देंगे जब उनका बल्ला इन आलोचकों को जबाब देना बंद कर देगा । येही सचिन की खुबिया है जो उन्हें भीड़ से अलग करता है और १०० कड़ोर लोगो के बिच उन्हें भगवान् का दर्जा दिलाता है । शायद जिस दिन तेंदुलकर क्रिकेट को अलविदा कहेंगे उस दिन क्रिकेट के लिए वो ऐसा शिखर छोर जायेंगे जिसे फतह करना असंभव होगा ....दुआ करो भारत वासी की सचिन का सफर जारी रहे और आपका भगवान् इसी तरह गेंदावाजो के धुर्रे उडाते रहे । ब्रायन लारा के रिकॉर्ड का फतह तो महज एक पडाव है अभी और दूर जाना है ....बहुत दूर ....शायद इतना दूर जहा क्रिकेट की दुनिया ने सोचा भी नही होगा ...... सचिन करोरो भारत वासी तुम्हारे बल्ले की थाप पर झुमने को मोहताज रहता है, तुम अपना सफर इसी अंदाज़ में जारी रखो ...

Oct 8, 2008

शहादत पर सियासत

बाटला हाउस एनकाउंटर को १५ दिन से भी ज्यादा बीत चुके है लेकिन इस एनकाउंटर को लेकर बिबाद या यु कहे की सियासत थमने का नाम ही नही ले रही है। बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए मोहनचंद शर्मा की शहादत पर उंगली उठाई जाने जाने लगी है । ये उंगली उठाने वाले कोई और नही बल्कि बदनामे जहा राजनेता और समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह है जिन्होंने पहले तो एनकाउंटर में शहीद हुए शर्मा के परिवार वाले को सहानुभूति प्रकट करने उनके धर भी गए थे और उनकी बीरता से प्रभावित होकर १० लाख रूपये देने की बात कही । लेकिन वो राजनेता ही कैसा जो अपने वादे से न मुकरे । अमर सिंह तो ऐसे भी इसके लिए कुख्यात है सो उन्होंने ठीक वही किया । १० लाख देने की वजाए शहीद शर्मा के परिवार को ऐसा चेक दिया जिसमे रकम सही नही था । वही दूसरी तरफ़ एनकाउंटर को फर्जी करार देने के लिए अमर सिंह मोहनचंद शर्मा की शहादत पर ही सवालिया निशान लगा रहे है । यानि एक तरफ़ शहीद को शर्धांजलि वही दूसरी तरफ़ एनकाउंटर पर सवाल । ये शायद अमर सिंह जैसे सियासतदान ही कर सकते है । या यु कहे वोट की राजनीती में सब कुछ जायज़ है । चाहे इसके लिए शहीद को ही कटधरे में क्यों न खड़ा करना पड़े । पहले तो बाटला हाउस एनकाउंटर और उसके बाद हुयी गिरफ्तारी जिसमे जामिया मिलिया इस्लामिया के ३ स्टुडेंट भी पकड़े गए, को कानूनी मदद देने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर मुशीरुल हसन आगे आ गए । फिर क्या था सियासत का ऐसा धिनौना खेल शुरू हुआ majhabi रंग लेता ja रहा है । मुस्लिम वोट के खातिर बाटला हाउस एक ऐसा मुकद्दाश मकाम बन गया जहा आए दिन कोई न कोई राजनेता वहा का दौरा कर रहे है और वोट की खातिर और अपने फायदे के लिए कुछ न कुछ ऐसा बयान जरूर दे रहे है जिससे देश के लिए कुर्बानी देने वाले परिवार को दुःख जरूर हो रहा है ।लेकिन पता नही हमारे राजनेता को कब इसकी समझ होगी की देश से बड़ा सियासत नही हो सकता। वोट की खातिर देश को batne की सियासत कहा तक सही है इसका फ़ैसला आम आदमी ही कर सकता है ।

Oct 1, 2008

लो मै आ गया

आखिरकार हिल हुज्जत के बाद ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम भारत के दौरे पर आ ही गई । और वह भी समय से एक वीक पहले ताकि भारत के कन्डीशन से पुरी वाकिफ होने में मदद मिल सके । हालिया बम धमाके ने इस दौरे पर संकट के बदल गहरा दिए थे लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम हमारे देश मे है ।और उनकी मेजबानी में राजस्थान क्रिकेट असोसिएशन पुरी सिद्दत से जुटी है । यही वजह है की इसको लेकर थोड़ा बिबाद भी है । लेकिन वर्ल्ड चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच चीर परिचित मैदानी ज़ंग जो हमेशा से सुर्खियों मे रही है फिर एक बार जोड़ पकड़ने लगी है ।क्रिकेट प्रेमी ये सवाल करने लगे है की क्या सिडनी का इतिहास फिर दोहराया जाएगा या फिर सचिन का बल्ला फिर ऑस्ट्रेलिया पर भारी पड़ेगा । ये सारे सवालो का जबाब तो आने वाले कुछ दिनों मे मिल ही जाएगा की आख़िर कौन किस पर भाडी पड़ता है। लेकिन इतना तो तय है क्रिकेट के इस महासमर मे रोमांच की गारंटी तो १०० फीसद है ही । ऐसे भी मैच ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच हो सचिन तेंदुलकर की चर्चा न हो ऐसा कैसे हो सकता है । येही वजह है रिक्की पोंटिंग की सेना भारत मे आते ही सचिन के लिए खास रणनीति बनाने मे जुटी है यानि भारतीय खेमे को चित करने के लिए पोंटिंग की पुरी रणनीति तेंदुलकर के आस पास ही है । और आख़िर हो भी क्यों न येही वो खिलाड़ी है जिसने अपने दम पर ऑस्ट्रेलिया टीम की एक बार नही कई बार नकेल कशी है चाहे मेलबोर्न का क्रिकेट ग्राउंड हो या फिर पर्थ की उछाल लेती पिच तेंदुलकर हर मैदान मे ऑस्ट्रेलिया के लिए सिरदर्द ही साबित हुए है । सचिन नाम का ये खौफ ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट खिलाडियों और उनके जनमानस पर किस कदर हावी है इसका जबाब वर्ल्ड के सबसे बेहतरीन फिरकी गेंदबाज शेन वॉर्न से बेहतर शायद ही कोई बता सके । सचिन के बल्लेबाजी के मुरीद सिर्फ़ दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमी ही नही है बल्कि क्रिकेट के पितामह सर डाउन ब्रेडमैन भी थे और वो भी ऑस्ट्रेलिया के ही थे । अब ऐसे मे ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाडियों को सपने आ रहे है तो समझा जा सकता है । यानि सचिन के करिश्मे से डरे ऑस्ट्रेलिया टीम अपने तरकश के हर वो तीर मे शान चढाने मे लगी है जो सचिन नाम के खौफ से निजात दिला सके । भारत के अधोसित भगवान् को काबू मे रख सके । लेकिन भगवान् तो भगवान् ठहरे और ऐसे मे भगवान् के करिश्मे से किसे डर नही लगेगा । तो ऐसे मे आप तैयार रहिये क्रिकेट के इस रोमांच के जिसका आगाज ९ अक्टूबर को होने जा रहा है । जो बयानबाजी के दौर से बाहर निकल कर मैदान मे भिडेंगे तो अंजाम सब के सामने होगा । यानि आगाज और अंजाम के बीच का दौर पुरे रोमांच से भरा होगा और इसकी गवाह हम और आप ही नही पुरी दुनिया होगी ।

Jul 7, 2008

राजनीती का बदलता मिजाज

कहते है राजनीती सिधान्तो पर चलती है लेकिन समय के साथ इसमे बदलाव आना लाजमी है वही बदलाव राजनीती में भी आया है , यानि राजनीती का मतलब सिधांत नही बल्कि सत्ता है और इसके लिए जो भी करो सब जायज़ है. कहने को लेफ्ट पार्टी गरीब और मजदूरो की बात करती है लेकिन सत्ता की मलाई खानी हो तो फिर ये सारी बाते पीछे छुट जाती है .भला ये कौन नही जानता है की सेज के नाम पर उधोगपतियों की खातिर कितने लोग बंगाल में हिंसा की भेट चढ़ गए , अब भला कोई ये पूछे लेफ्ट वालो से की आख़िरकार गरीबो की बात करने वाली उनकी पॉलिसी कहा चली गई, क्यों उनके नेता गांव के लोगो की हालात जानने की वजाय दिल्ली की पाच सितारा होटल में ही ज्यादा दीखते है यानि ये लोग भी समझ गए है की सत्ता के इस खेल में आम लोगो की बात करने से ज्यादा बेहतर है अपना एजेंडा आगे रखना यूपीए सरकार संकट में है और इसके लिए बहुत हद तक लेफ्ट पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है क्योकि लेफ्ट पार्टी को परमाणु करार से उतनी परेशानी नही है जितनी अमेरिका से मनमोहन सरकार की नजदीकी , लेफ्ट पार्टियों को लगता है की इससे उनके मुस्लिम बोट बैंक के खिसकने का खतरा ज्यादा है वही चीन जो हमारे लिए दिन व दिन खतरा बनता जा रहा है उससे इनको कोई परेशानी नही है क्योकि इससे इनके सियासत की गोटी लाल होती रहेगी यानि सियासत में देश हित उतना जरूरी नही जितना बोट बैंक .अब बोट के नाम पर देश हित का कोई मतलब नही और कमोबेश सभी राजनितिक पार्टियों का यही हाल है मुझे भी लगता है की कुछ हद तक ये सही है क्योकि इनका बजूद रहेगा तभी तो सियासत होगी और तभी तो देश हित की बात होगी इसलिए हमे तैयार रहना चाहिए की आने वाले समय में राजनीती का मिजाज कुछ ऐसा ही होगा यानि सरकार आएगी और जायेगी और सियासत के सुर ताल पर हम सब इसी तरह मोहरे के रूप में इस्तेमाल होते रहेंगे