Oct 8, 2008

शहादत पर सियासत

बाटला हाउस एनकाउंटर को १५ दिन से भी ज्यादा बीत चुके है लेकिन इस एनकाउंटर को लेकर बिबाद या यु कहे की सियासत थमने का नाम ही नही ले रही है। बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए मोहनचंद शर्मा की शहादत पर उंगली उठाई जाने जाने लगी है । ये उंगली उठाने वाले कोई और नही बल्कि बदनामे जहा राजनेता और समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह है जिन्होंने पहले तो एनकाउंटर में शहीद हुए शर्मा के परिवार वाले को सहानुभूति प्रकट करने उनके धर भी गए थे और उनकी बीरता से प्रभावित होकर १० लाख रूपये देने की बात कही । लेकिन वो राजनेता ही कैसा जो अपने वादे से न मुकरे । अमर सिंह तो ऐसे भी इसके लिए कुख्यात है सो उन्होंने ठीक वही किया । १० लाख देने की वजाए शहीद शर्मा के परिवार को ऐसा चेक दिया जिसमे रकम सही नही था । वही दूसरी तरफ़ एनकाउंटर को फर्जी करार देने के लिए अमर सिंह मोहनचंद शर्मा की शहादत पर ही सवालिया निशान लगा रहे है । यानि एक तरफ़ शहीद को शर्धांजलि वही दूसरी तरफ़ एनकाउंटर पर सवाल । ये शायद अमर सिंह जैसे सियासतदान ही कर सकते है । या यु कहे वोट की राजनीती में सब कुछ जायज़ है । चाहे इसके लिए शहीद को ही कटधरे में क्यों न खड़ा करना पड़े । पहले तो बाटला हाउस एनकाउंटर और उसके बाद हुयी गिरफ्तारी जिसमे जामिया मिलिया इस्लामिया के ३ स्टुडेंट भी पकड़े गए, को कानूनी मदद देने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर मुशीरुल हसन आगे आ गए । फिर क्या था सियासत का ऐसा धिनौना खेल शुरू हुआ majhabi रंग लेता ja रहा है । मुस्लिम वोट के खातिर बाटला हाउस एक ऐसा मुकद्दाश मकाम बन गया जहा आए दिन कोई न कोई राजनेता वहा का दौरा कर रहे है और वोट की खातिर और अपने फायदे के लिए कुछ न कुछ ऐसा बयान जरूर दे रहे है जिससे देश के लिए कुर्बानी देने वाले परिवार को दुःख जरूर हो रहा है ।लेकिन पता नही हमारे राजनेता को कब इसकी समझ होगी की देश से बड़ा सियासत नही हो सकता। वोट की खातिर देश को batne की सियासत कहा तक सही है इसका फ़ैसला आम आदमी ही कर सकता है ।

2 comments:

संदीप सिंह said...

amit ji hamare rajneta bakhubi jante hai ki siyasat desh se badi nahi lekin sirf bhasano hakikat me ye siyasat hi hai jo desh ko chala rahi hai , rahi bat vote bank ki, to rajniti ki pathshala me vote batorna hi sikha hai tarika kuch bhi ho ,ab aese me aam aadmi kya fesla karega hamam me to sab nange hai kya amae kya adwani

nilesh said...

अमित जी क्यों नेताओं के नकाब को नोचना चाहते हैं। उनका असली चेहरा सबको खल रहा है लेकिन उनके मुखौटे की हां में हां मिलाना सबकी मजबूरी है। देश की सुरक्षा में लगे जवान की शहादत कभी बेकार नहीं गई है और न ही जाएगी। हां, अपनी राजनीति की रोटी सेकने के चक्कर में ये बिना पेंदी के नेता उनकी शहादत को धूमिल करने से बाज नहीं आते। नतीजा ये होता है शहीद के परिवार वालों को उनके जाने से ज्यादा इन घटिया बयानबाजी और ओछी राजनीति दुख पहुंचाती है। भई ये नेता बनते ही इसी दिन के लिए हैं।
बहरहाल क्या खूब लिखा है आपने। एक एक शब्द तीखे हैं। मेरे ख्याल से ऐसे विचारोत्तेजक बाण किसी राष्ट्रीय अखबार के सम्पादकीय के जरिए छोड़े जाने चाहिए। जो लोगों को झकझोर कर रख दे। शायद अबतक किसी अखबार के सम्पादक की नजर आपके ब्लॉग पर नहीं पड़ी है। वरना अगले ही दिन से आपके ये तीक्ष्णभेदी विचार सम्पादकीय पृष्ठ पर नजर आते।