Jul 7, 2008

राजनीती का बदलता मिजाज

कहते है राजनीती सिधान्तो पर चलती है लेकिन समय के साथ इसमे बदलाव आना लाजमी है वही बदलाव राजनीती में भी आया है , यानि राजनीती का मतलब सिधांत नही बल्कि सत्ता है और इसके लिए जो भी करो सब जायज़ है. कहने को लेफ्ट पार्टी गरीब और मजदूरो की बात करती है लेकिन सत्ता की मलाई खानी हो तो फिर ये सारी बाते पीछे छुट जाती है .भला ये कौन नही जानता है की सेज के नाम पर उधोगपतियों की खातिर कितने लोग बंगाल में हिंसा की भेट चढ़ गए , अब भला कोई ये पूछे लेफ्ट वालो से की आख़िरकार गरीबो की बात करने वाली उनकी पॉलिसी कहा चली गई, क्यों उनके नेता गांव के लोगो की हालात जानने की वजाय दिल्ली की पाच सितारा होटल में ही ज्यादा दीखते है यानि ये लोग भी समझ गए है की सत्ता के इस खेल में आम लोगो की बात करने से ज्यादा बेहतर है अपना एजेंडा आगे रखना यूपीए सरकार संकट में है और इसके लिए बहुत हद तक लेफ्ट पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है क्योकि लेफ्ट पार्टी को परमाणु करार से उतनी परेशानी नही है जितनी अमेरिका से मनमोहन सरकार की नजदीकी , लेफ्ट पार्टियों को लगता है की इससे उनके मुस्लिम बोट बैंक के खिसकने का खतरा ज्यादा है वही चीन जो हमारे लिए दिन व दिन खतरा बनता जा रहा है उससे इनको कोई परेशानी नही है क्योकि इससे इनके सियासत की गोटी लाल होती रहेगी यानि सियासत में देश हित उतना जरूरी नही जितना बोट बैंक .अब बोट के नाम पर देश हित का कोई मतलब नही और कमोबेश सभी राजनितिक पार्टियों का यही हाल है मुझे भी लगता है की कुछ हद तक ये सही है क्योकि इनका बजूद रहेगा तभी तो सियासत होगी और तभी तो देश हित की बात होगी इसलिए हमे तैयार रहना चाहिए की आने वाले समय में राजनीती का मिजाज कुछ ऐसा ही होगा यानि सरकार आएगी और जायेगी और सियासत के सुर ताल पर हम सब इसी तरह मोहरे के रूप में इस्तेमाल होते रहेंगे