Oct 23, 2008

नफरत की "राज"नीति

कहते है राजनीती लोकहित के लिए की जाती है खासकर भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में लोगो की सबसे बड़ी ताकत राजनेता ही होते है । क्यूकी वो आम लोगो के प्रतिनिधि होते है । लेकिन जब नायक ही खलनायक बन जाए तो ऐसे में हालात को समझा जा सकता है । पिछले कुछ सालो से हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है यानि राजनीती के जरिये ही लोकतंत्र का गला दबाया जा रहा है । जी हा जिस लोकतन्त्र ने राजनीती का विकसित प्लेटफार्म दिया उसी का गला दबाने की साजिस । इसी का नतीजा है की मुंबई जल रहा था या यु कहे की जलाई जा रही थी और सियासत करने वाले अपना हाथ शेकने में मशगुल थे और ये सब कुछ हो रहा था वोट बैंक की खातिर । ये नफ़रत की सियासत का आगाज ८ महीने पहले वालासाहब ठाकरे के भतीजे ने किया जो आज किसी परिचय के मोहताज नही । आपने बिल्कुल ठीक समझा राज ठाकरे । लेकिन राज ठाकरे की माने तो वो ये सब कुछ मराठी मानुस के लिए कर रहे है यानि ११ करोड़ मराठी के स्वाभिमान की लडाई । ये लडाई उनके चाचा और शिवसेना के सर्बेसरवा बालासाहब ठाकरे भी लड़ चुके है और वो भी आज से ४२ साल पहले १९६६में । तब महाराष्ट के कांग्रेसी मुख्मंत्री बसंत राव नाईक थे और बालासाहब ठाकरे गैर मराठियों के खिलाफ इसी तरह का मोर्चा खोला था जैसा आज कल राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ खोले हुए है । हा ये जरूर है की बालासाहब मराठियों का दिल तो नही जीत सके थे लेकिन वसंत राव नाईक का दिल जरूर जीत लिया था ।क्यूकी नाईक साहब वाममोर्चा का मुंबई के मिलो पर लगे लाल झंडे को हटाना चाहते थे और बालासाहब ठाकरे अपने गुंडा गिरोह के जरिये इसी तरह आगजनी और तोड़ फोर करके नाईक साहब के काम को अंजाम तक पंहुचा दिया था । लाल झंडा इतिहास बन गया और बालासाहब ठाकरे नेता बन गए तथाकथित मराठी मानुस के । आज ४२ साल बाद जब वोही शिवसेना कांग्रेस के लिए खतरा बनने लगी है तो कांग्रेस के ही बर्तमान मुख्मंत्री विलास राव देशमुख को राज ठाकरे के रूप में एक ऐसा हथियार मिल गया जो न सिर्फ़ शिवसेना के मराठी वोट बैंक में सेंध लगा सके बल्कि शिवसेना के वोट बैंक को तोड़ कर कांग्रेस के लिए सत्ता का द्वार खुला रखे ..... आज राज और उनके गुंडे जो कुछ मुंबई में कर रहे है उसे महाराष्ट के कांग्रेसी सरकार का हिमायत हासिल है । और उसी हिमायत की सह पर राज ठाकरे गली मुहल्ले के नेता से हीरो बन्ने की और आगे बढ़ रहे है । लेकिन इन सब के बीच जो पिछले ८ महीने से महाराष्ट में मराठी मानुस के नाम पर हो रहा है उसका आभास शायद राज ठाकरे को भी नही है बरना मराठी मानुस के नाम पर वो लाखो करोरो मराठियों का नुकसान नही करते । राज ठाकरे को शायद यह भी नही पता की मुंबई में हुए पिछले ४ दिनों की आगजनी और तोड़ फोर में सबसे ज्यादा नुकसान उनके मराठी मानुस का ही हुआ है । लेकिन पिछले कुछ दिनों में न सिर्फ़ मुंबई बल्कि देश के दुसरे भागो में जो कुछ हुआ उससे एक बात साफ हो गई की राजनीती हमारे देश के लिए वरदान नही बल्कि अभिशाप होने जा रहा है । जिस तरह जाती और धर्म के नाम पर सियासत का बाज़ार तेज़ हो रहा है उससे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के वाहक राष्ट्र के बुनियाद को खतरे में ला खड़ा किया है । सवाल ये है की क्या इसी तरह की नफ़रत की आग भड़का कर सियासत होगी । सवाल सिर्फ़ मुंबई का ही नही है बल्कि उड़ीसा , कर्नाटक में जिस तरह चर्च को जलाया गया , हिंसा का नग्गा नाच किया किया और सरकार मूक दर्शक बनकर देखती रही उससे ये सवाल उठाना लाजमी होता है की इस देश में सबकुछ या यु कहे की कुछ भी ठीक नही है । कही पर नक्सल हावी है तो कही पर उग्रवादी गुट और जहा ये नही है वह सियासत का ऐसा रोग हावी है जो लोगो को कुछ देने की बदले उनका रोजी रोटी छीन रही है । क्या इसी तरह देश चलेगे .क्या इसी तरह टुकड़े टुकड़े में लोगो को वोट बैंक में बाँट कर सियासत होगी । आज हालात ये है जहा एक तरफ़ हम चंदरमा तक की दूरी को ठेंगा दिखा रहे है वोही दूसरी तरफ़ देश के दुसरे कर्णधार देश की ही मिटटी पलीद करने में लगे है और वो भी बेशर्मी से । जहा हम दुनिया भर में ताल टोक कर वर्ल्ड के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश होने का दंभ भरते है वोही शायद हमें इसी लोकतंत्र का मखौल उडाते हुए शर्म भी नही आता । अब भला ये कोई पूछे क्या येही लोकतंत्र है जिसमे लोक और तंत्र का गला दबाया जा रहा होता है और तंत्र तमाशबीन रहता है। क्या येही गाँधी का भारत है जिसमे दंगा और आगजनी करने की पुरी छुट है । क्या येही गाँधी का सपना था जिसे गाँधी के वारिस नई उचाई तक पंहुचा रहे है । इन राजनेताओ ने देश को कुछ दिया तो नही हा बदले में लोगो का रोजी रोटी छीन कर उनके भावनाओ के साथ जरूर खेल रहे है इसके लिए इतिहाश इन "राज " नेताओ को शायद ही माफ़ करे ....... लेकिन इन सब के बीच अगर देश की जनता इसी तरह चुप चाप बैठ कर तमाशा देखती रही तो देश के हर गली मोहल्ले में एक राज ठाकरे होगा और सियासत करने वाले वो लोग होयिंगे जो राज ठाकरे जैसे गुंडा को प्रोत्साहन देते है ..... और आम आदमी इसी तरह राजनीती की चौकरी में पिसते रहेंगे ....अब आपको तय करना है ........नफ़रत की सियासत का बीज बोने वाले या फिर ऐसा समाज जिसमे गुंडा "राज" नही बल्कि सामाजिक समरसता .....

6 comments:

Anonymous said...

amit ji
its excellent but mind it raj thakre is not a different character of indian politics . i dont understand ur goonda raj . they are raj follower as mulayam singh, mayavati ,laloo have . people support raj thakre's idea . raj thakre is mass leader he is not don . we should not blame only thakre but political system of india .
thanks

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Himanshu Pandey said...

"एक चिनगार कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों
इस दिल में तेल से भींगी हुई बाती तो है"
लिखते रहें ऐसे ही, बात यहीं से निकलेगी।
हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sahi hai main bhee jaanki express ki hee bat karunga, aajkal yahi rajniti hai

Kasbanama* * * * * Amrendra Kumar said...

Nafrat ki rajneeti pasand ayee. Jo parichay ke mohtaj naheen wakya theek naheen hai. Amrendra kumar

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आपका स्वागत है. साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद