Aug 4, 2011

भ्रष्टाचार को मुद्दा क्यों माने?



देश भ्रष्टाचार के आकंठ में डुबा है ।और इसकी गंगोत्री कही और से नहीं,सीधे सीधे सत्ता के शिखर से बह रही है।फिर भी देश के 125 करोड़ लोगों के नुमाइंदे होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए यह मसला ही नहीं है।जब प्रधानमंत्री के लिए यह मसला ही नहीं है तो भला सत्ता का सुख भोगने में जुटी कांग्रेस पार्टी को इसे लेकर चिंता क्यो होने लगे।आलम यह है कि केन्द्र सरकार के एक या दो मंत्री पर नहीं, दर्जन भर मंत्री पर तो रोज धपले ओर घोटाले के आरोप सामने आ रहे है।लेकिन मनमोहन सिंह की खामोशी है कि टूटने का नाम ही नहीं ले रही।

सीएजी की हालिया रिपोर्ट जिसमें काॅमनवेल्थ गेम में घोटाले को लेकर सीघे सीघे प्रधानमंत्री आॅफिस के शामिल होने की बात की गई है। 12 साल से सत्ता का सुख भोग रही दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की गर्दन फंस रही है।लेकिन इससे परे प्रधानमंत्री खुद खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे है।

ऐसा भी नहीं है कि हमारे प्रधानमंत्री जी भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर नहीं है और इसे जड़ से मिटा नहीं सकते ।लेकिन इनकी मजबूरी यही है कि सत्ता के शीर्ष पर विराजामन रहने के बावजूद न तो इस पर कार्रवाई करने का उनको अधिकार हासिल है और ना ही इस मसले पर ईमानदारी से मुंह खोलने का आदेश। हां खानापुर्ति के लिए शुंगलु कमेटी की सिफारिश को लागु करने की बात वेा जरूर कर रहे है लेकिन खुद के बनाए कमेटी की रिर्पोट केा लागु करने में भी ये लाचार और विवश क्यों है ये तो पूरा देश जान रहा है।

भ्रष्टाचार को प्रश्रय कहां से मिल रहा है और कौन सत्ता केा सीघे सीघे संचालित कर रहा है यह भी किसी से छुपी नहीं है।लेकिन सब कुछ जानते हुए भी हमारे प्रधानमंत्री जी अपनी मजबूरी केा आम आदमी के सामने रखने की वजाए बस खुद केा पाक साफ बताने में लगे है।भला मनमोहन सिंह के पाक साफ होने और दिखने में तो किसी को आपति है ही नहीं। विवाद तो इस बात का है कि आखिर उस पाप को वो क्यों ढ़ो रहे है जो उन्होंने किया ही नहीं।

देश एक छद्म प्रधानमंत्री के सहारे चलाया जा रहा है और सत्ता का मजा कोई और उठा रहा है।लेकिन कीमत मनमोहन सिंह के जरिये तय हो रही है।नुकसान मनमोहन सिंह का और फायदा राहुल गांधी और सोनिया गांधी का।राजनीति इस देश में किस तर्ज पर 2004 के बाद बढ़ रही है उसका एक बानगी भर है।

कायदे से किसी भी लोकतांत्रिक देश में सरकार की कमजोरी को उजागर करने और उसका फायदा उटाने का काम विपक्ष का होता है। लेकिन जब विरोधी पार्टी खुद की मुसीबतांे से ही नहीं उबर पा रही है ओैर खुद भी कुछ इसी तरह के कारनामों में शामिल हो, तो भला उम्मीद किया जाए तो किससे। बस वो तो इस ताक में बैठे है कि काश हमें भी इसी तरह का मौका मिलता। जहंा मिला हुआ है वहां यूपीए 2 की तरह लुट खसोट मची है। ऐसे में आम आदमी को लेकर आगे बढ़े तो कौन ?

जहंा तक रही हमारे मनमोहन सिंह की बात तो वो करे तो क्या करे। हटाने और रखने का अघिकार उनके पास हो तब ना! इस अधिकार से तो वो पहले ही दिन से ही मुक्त है। 2जी जैसे बड़े घोटाले सामने आने के बाद सरकार यह बताने में जुटी रही की इसमें घोटाला हुआ ही नहीं है। लेकिन सुप्रीम केार्ट की वजह से इसमें शामिल लोग आज हवालात की हवा खा रहे है। बात चाहे ए राजा की हो या फिर काॅर्पोरेट घराने के बड़े बड़े दिग्गजो ंकी। सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी से आने वाले दिनों में जेल के सलाखो के पीछें पहुंचने वाले नेताओं की फेहरिस्त लंबी हो सकती है।और यह भी मुमकिन है कि इसमें मनमोहन सिंह मंत्रीमंडल के कई नवरत्न राजा के साथ हवालात की हवा खाते दिखे।







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